Sunday 28 February 2016

वेब पत्रकारिता क्या है ?


पत्रकारिता / जनसंचार पत्रकारिता (मीडिया) का प्रभाव समाज पर लगातार बढ़ रहा है। इसके बावजूद यह पेशा अब संकटों से घिरकर लगातार असुरक्षित हो गया है। मीडिया की चमक दमक से मुग्ध होकर लड़के लड़कियों की फौज इसमें आने के लिए आतुर है। बिना किसी तैयारी के ज्यादातर नवांकुर पत्रकार अपने आर्थिक भविष्य का मूल्याकंन नहीं कर पाते। पत्रकार दोस्तों को मेरा ब्लॉग एक मार्गदर्शक या गाईड की तरह सही रास्ता बता और दिखा सके। ब्लॉग को लेकर मेरी यही धारणा और कोशिश है कि तमाम पत्रकार मित्रों और नवांकुरों को यह ब्लॉग काम का अपना सा उपयोगी लगे। वेब- पत्रकारिता का आशय वेब पत्रकारिता को हम इंटरनेट पत्रकारिता, ऑनलाइन पत्रकारिता, सायबर पत्रकारिता आदि नाम से जानते हैं . जैसा कि वेब पत्रकारिता नाम से स्पष्ट है यह कंप्यूटर और इंटरनेट के सहारे संचालित ऐसी पत्रकारिता है जिसकी पहुँच किसी एक पाठक, एक गाँव, एक प्रखंड, एक प्रदेश, एक देश तक नहीं बल्कि समूचा विश्व है और जो डिजिटल तंरगों के माध्यम से प्रदर्शित होती है . प्रिंट मीडिया से यह इस रूप में भी भिन्न है क्योंकि इसके पाठकों की संख्या को परिसीमित नहीं किया जा सकता . इसकी उपलब्धता भी सार्वत्रिक है . इसके लिए मात्र इंटरनेट और कंप्यूटर, लैपटॉप, पॉमटॉप या अब मोबाईल की ही जरूरत होती है . इंटरनेट के ऐसा माध्यम से वेब-मीडिया सर्वव्यापकता को भी चरितार्थ करती है जिसमें ख़बरें दिन के चौबीसों घंटे और हफ़्ते के सातों दिन उपलब्ध रहती हैं . वेब पत्रकारिता की सबसे खासियत है उसका वेब यानी तंरगों पर घर होना . अर्थात् इसमें उपलब्ध किसी दैनिक, साप्ताहिक, मासिक पत्र-पत्रिका को सुरक्षित रखने के लिए किसी किसी आलमीरा या लायब्रेरी की जरूरत नहीं होती . समाचार पत्रों और टेलिविज़न की तुलना में इंटरनेट पत्रकारिता की उम्र बहुत कम है लेकिन उसका विस्तार तेज़ी से हुआ है . वाले दिनों में इसका विस्तार बेतार पत्रकारिता यानी वायरलेस पत्रकारिता में होगा जिसकी पहल कुछ मोबाइल कंपनियों द्वारा शुरू भी की जा चुकी है . वेब मीडिया या ऑनलाइन जर्नलिज्म परंपरागत पत्रकारिता से इन अर्थों में भिन्न है उसका सारा कारोबार ऑनलाइन यानी रियल टाइम होता है . ऑनलाइन पत्रकारिता में समय की भारी बचत होती है क्योंकि इसमें समाचार या पाठ्य सामग्री निरंतर अपडेट होती रहती है . इसमें एक साथ टेलिग्राफ़, टेलिविजन, टेलिटाइप और रेडियो आदि की तकनीकी दक्षता का उपयोग सम्भव होता है . आर्काइव में पुरानी चीजें यथा मुद्रण सामग्री, फिल्म, आडियो जमा होती रहती हैं जिसे जब कभी सुविधानुसार पढ़ा जा सकता है . ऑनलाइन पत्रकारिता में मल्टीमीडिया का प्रयोग होता है जिसमें, टैक्स्ट, ग्राफिक्स, ध्वनि, संगीत, गतिमान वीडियो, थ्री-डी एनीमेशन, रेडियो ब्रोडकास्टिंग, टीव्ही टेलीकास्टिंग प्रमुख हैं . और यह सब ऑनलाइन होता है, यहाँ तक कि पाठकीय प्रतिक्रिया भी . कहने का वेब मीडिया में मतलब प्रस्तुतिकरण और प्रतिक्रियात्मक गतिविधि एवं सब कुछ ऑनलाइन (एट ए टाइम) होता है . परंपरागत प्रिंट मीडिया एट ए टाइम संपूर्ण संदर्भ पाठकों को उपलब्ध नहीं करा सकता किन्तु ऑनलाइन पत्रकारिता में वह भी संभव है – मात्र एक हाइपरलिंक के द्वारा . इंटरनेट पत्रकारिता के टूल्स वेब पत्रकारिता प्रिंट और इलेक्ट्रानिक माध्यम की पत्रकारिता से भिन्न है . वेब पत्रकारिता के लिए लेखन की समस्त दक्षता के साथ-साथ कंप्यूटर और इंटरनेट की बुनियादी ज्ञान के अलावा कुछ आवश्यक सॉफ्टवेयरों के संचालन में प्रवीणता भी आवश्यक होता है जैसेः- 1. प्रिंटिग एवं पब्लिशिंग टूल्स - पेजमेकर, क्वार्क एक्सप्रेस, एमएमऑफिस आदि . 2. ग्राफिक टूल्स - कोरल ड्रा, एनिमेशन, फ्लैश, एडोब फोटोशॉप आदि . 3. सामग्री प्रबंधन टूल्स – एचटीएमएल, फ्रंटपेज, ड्रीमवीवर, जूमला, द्रुपल, लेन्या, मेम्बू, प्लोन, सिल्वा, स्लेस, ब्लॉग, पोडकॉस्ट, यू ट्यूब आदि. 4. मल्टीमीडिया टूल्स- विंडो मीडिया प्लेयर, रियल प्लेयर, आदि . 5. अन्य टूल्स- ई-मेलिंग, सर्च इंजन, आरएसएस फीड, विकि टेकनीक, मैसेन्जर, विडियो कांफ्रेसिंग, चेंटिंग, डिस्कशन फोरम . वेब पत्रकारिता में सामग्री भारत के इंटरनेट समाचार पत्र मुख्यतः अपने मुद्रित संस्करणों की सामग्री यथा लिखित सामग्री और फोटो ही उपयोग लाते हैं . ये समाचार पत्र एक्सक्लूसिव समाचार और फीचर की तैयारी इंटरनेट संस्करण के लिए बहुधा नहीं किया करते हैं . ऑनलाइन संस्करणों में मुद्रित संस्करणों के सभी समाचार, फीचर एवं फोटोग्राफ़ भी उपयोग नहीं किये जा रहे हैं . लगभग 60 प्रतिशत समाचार और दर्जन भर फोटोग्राफ़ के साथ प्रतिदिन का इंटरनेट संस्करण क्रियाशील बनाये रखने की प्रवृति भी देखने को मिल रही है . ऑनलाइन समाचार पत्रों का ले आउट मुद्रित संस्करणों की तरह नहीं होता है जबकि मुद्रित संस्करणों की सामग्री 8 कॉलमों में होती हैं . ऑनलाइन पत्र की सामग्री कई रूपो में होती हैं . इसमें एक मुख्य पृष्ठ होता है जो कंप्यूटर के मॉनीटर में प्रदर्शित होता है जहाँ विविध खंडों में सामग्री के मुख्य शीर्षक हुआ करते हैं . इसके अलावा खास समाचारों और मुख्य विज्ञापनों को भी मुख्य पृष्ठ में रखा जाता है जिन्हें क्लिक करने पर उस समाचार, फोटो, फीचर, ध्वनि या दृश्य का लिंक किया हुआ पृष्ठ खुलता है और तब पाठक उसे विस्तृत रूप में पढ़, देख या सुन सकता है . समाचार सामग्री को वर्गीकृत करने वाले मुख्य शीर्षकों का समूह अधिकांशतः हर पृष्ठों में हुआ करते हैं . ये शीर्षक समाचारों की स्थानिकता, प्रकृति आदि के आधार पर हुआ करते हैं जैसे विश्व, देश, क्षेत्रीय, शहर . या फिर राजनीति, समाज, खेल, स्वास्थ्य, मनोरंजन, लोकरूचि, प्रौद्योगिकी आदि . ये सभी अन्य पृष्ठ या वेबसाइट से लिंक्ड रहते हैं . इस तरह से एक पाठक केवल अपनी इच्छानुसार ही संबंधित सामग्री का उपयोग कर सकता है . पाठक एक ई-मेल या संबंधित साइट में ही उपलब्ध प्रतिक्रिया देने की तकनीकी सुविधा का उपयोग कर सकता है . वांछित विज्ञापन के बारे में विस्तृत जानकारी भी पाठक उसी समय जान सकता है जबकि एक मुद्रित संस्करण में यह असंभव होता है . इस तरह से ऑनलाइन संस्करणों में ऑनलाइन शापिंग का भी रास्ता है . मुद्रित संस्करणों में पृष्ठों की संख्या नियत और सीमित हुआ करती है जबकि ऑनलाइन संस्करणों में लेखन सामग्री और ग्राफिक्स की सीमा नहीं हुआ करती . ऑनलाइन पत्रों की एक विशेषता है कि वहाँ उसके पाठकों की सख्या यानी रीड़रशीप उसी क्षण जानी जा सकती है . वेब-पत्रकारिता का सामान्य वर्गीकरण इंटरनेट अब दूरस्थ पाठकों के लिए समाचार प्राप्ति का सबसे खास माध्यम बन चुका है . इधर इंटरनेट आधारित पत्र-पत्रिकाओं की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है . इसमें दैनिक, साप्ताहिक, मासिक, त्रैमासिक सभी तरह की आवृत्तियों वाले समाचार पत्र और पत्रिकायें शामिल हैं . विषय वस्तु की दृष्टि से इन्हें हम समाचार प्रधान, शैक्षिक, राजनैतिक, आर्थिक आदि केंद्रित मान सकते हैं . यद्यपि इंटरनेट पर ऑनलाइन सुविधा के कारण स्थानीयता का कोई मतलब नहीं रहा है किन्तु समाचारों की महत्ता और प्रांसगिकता के आधार पर वर्गीकरण करें तो ऑनलाइन पत्रकारिता को भी हम स्थानीय, प्रादेशिक, राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर देख सकते हैं . जैसे भोपाल की www. Com को स्थानीय, नई दुनिया डॉट कॉम, या दैनिक छत्तीसगढ़ डॉट कॉम को प्रादेशिक, नवभारत टाइम्स डॉट कॉम को राष्ट्रीय और बीबीसी डॉट कॉम, डॉट काम को अंतरराष्ट्रीय स्तर की ऑनलाइन समाचार पत्र मान सकते हैं . ऑनलाइन पत्रकारिता को सामग्री के आधार पर हम 3 तरह से देख सकते हैः- 1. ऐसे समाचार जिनके प्रिंट संस्करण की आंशिक सामग्री ही ऑनलाइन हो . इस श्रेणी में हम नई दुनिया, दैनिक भास्कर, नवभारत, हिंदुस्तान टाइम्स आदि को रख सकते हैं . 2. ऐसे समाचार पत्र जिनके प्रिंट और इंटरनेट संस्करण दोनों की सामग्रियों में काफी समान हो . 3. ऐसे समाचार जिनका इंटरनेट संस्करण प्रिंट संस्करण से भिन्न हो . इसका उदाहरण टाइम्स ऑफ़ इंडिया है . इस समाचार पत्र के इंटरनेट संस्करण में पृथक समाचार होते हैं जो एक ई-पेपर के माध्यम से ऑनलाइन होता है . 4. ऐसे पोर्टल या न्यूज साइट जो केवल इंटरनेट पर ही संचालित हैं . इनमें प्रभासाक्षी डॉट कॉम आदि को गिना सकते हैं . वेब-पत्रकारिता का आदिकाल दुनिया जिस तरह से प्रौद्योगिकी केंद्रित होती जा रही है और जिस तरह से विश्वमानव का रूझान साफ़ झलक रहा है उसे देखकर कहा जा सकता है कि भविष्य में उसकी दिनचर्चा को कंप्यूटर और इंटरनेट जीवन-साथी की तरह संचालित करेंगे, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि सूचना और संचार प्रिय दुनिया भविष्य में इंटरनेट आधारित पत्रकारिता पर अधिक निर्भर और विश्वास करेगी . पश्चिमी देश के परिदृश्य यही सिद्ध करते हैं जहाँ प्रिंट मीडिया का स्थान धीरे-धीरे इलेक्ट्रानिक मीडिया ने ले लिया और अब वहाँ वेब-मीडिया या ऑनलाइन मीडिया का बोलबाला है . 1970 – 1980 के दशक में जब कंप्यूटर का व्यापक प्रयोग होने लगा तब समाचार पत्र के उत्पादन विधि में परिवर्तन आने लगा . तब यह किसे पता था कि यही कंप्यूटर एक दिन ऑनलाइन समाचार पत्र का जगह ले लेगा . 1980 में अमेरिका के न्यूयार्क टाइम्स, वॉल स्ट्रीट जनरल, डाव जोन्स ने अपने-अपने प्रिंट संस्करणों के साथ-साथ समाचारों का ऑनलाइन डेटाबेस रखना भी प्रारंभ किया . वेब-पत्रकारिता या ऑनलाइन पत्रकारिता को तब और गति मिली जब 1981 में टेंडी द्वारा लैटटॉप कंप्यूटर का विकास हुआ . इससे किसी एक जगह से ही समाचार संपादन, प्रेषण करने की समस्या जाती रही . ऑनलाइन समाचार पत्रों के प्रचलन में क्रांतिकारी परिवर्तन आया 1983 में जब अमेरिका के Knight-Ridder newspaper group ने AT&T के साथ मिलकर लोगों की माँग पर प्रायोगिक तौर पर उनके कंप्यूटर और टेलिविजन पर समाचार उपलब्ध कराने लगे . 90 के दशक आते-आते संवाददाता कंप्यूटर, मोडेम, इंटरनेट या सैटेलाइट का प्रयोग कर विश्व से कहीं भी तत्क्षण समाचार भेजने और प्रकाशित करने में सक्षम हो गये . 1998 में विश्व के लगभग 50 मिलियन लोग 40,000 नेटवर्क के माध्यम प्रतिदिन इंटरनेट का उपयोग किया करते थे . उनमें एक बड़ी संख्या में लोग समाचार, समाचार पत्र, समाचार एजेंसी और पत्रिकाएं विश्व को जानने समझने के लिए इंटरनेट पर तलाशते थे . एकमात्र अमेरिका की टाइम मैग्जीन ही ऐसी थी जिसने 1994 में इंटरनेट पर पैर रखा . उसके बाद 450 पत्रिकाओं और समाचार पत्र प्रकाशनों ने इंटरनेट में स्वयं को प्रतिष्ठित किया . तब भी इंटरनेट पर कोई समाचार एंजेसी कार्यरत नहीं थी किन्तु एक अनुमान के अनुसार दिसम्बर 1998 के अंत तक 4700 मुद्रित समाचार पत्र इंटरनेट पर थे . भारत में वेब-पत्रकारिता का विकास जहाँ तक भारत में वेब-पत्रकारिता का सवाल है उसे मात्र 10 वर्ष हुए हैं . ये 10 वर्ष कहने भर को है दरअसल भारती की वेब-पत्रकारिता अभी शिशु अवस्था में है और इसके पीछे दरअसल भारत इंटरनेट की उपलब्धता, तकनीकी ज्ञान और रूझान का अभाव, अंगरेज़ी की अनिवार्यता, नेट संस्करणों के प्रति पाठकों में संस्कार और रूचि का विकसित न होना तथा आम पाठकों की क्रय शक्ति भी है . भारत में इंटरनेट की सुविधा 1990 के मध्य में मिलने लगी . भारत में वेब-पत्रकारिता के चैन्नई का ‘द हिन्दू’ पहला भारतीय अख़बार है जिसका इंटरनेट संस्करण 1995 को जारी हुआ . इसके तीन साल के भीतर अर्थात् 1998 तक लगभग 48 समाचार पत्र ऑनलाइन हो चुके थे . ये समाचार पत्र केवल अंगरेज़ी में नहीं अपितु अन्य भारतीय भाषा जैसे हिंदी, मराठी, मलयालम, तमिल, गुजराती भाषा में थे . इस अनुक्रम में ब्लिट्ज, इंडिया टूडे, आउटलुक और द वीक भी इंटरनेट पर ऑनलाइन हो चुकी थीं . ऑनलाइन भारतीय समाचार पत्रों और पत्रिकाओं की पाठकीयता भारत से कहीं अधिक अमेरिका सहित अन्य देशों में है जहाँ भारतीय मूल के प्रवासी लोग रहते हैं या अस्थायी तौर पर रोजगार में संलग्न हैं . एक शोध के अनुसार (किरण ठाकुर, पुणे विश्वविद्यालय के रिसर्च पेपर ‘भारत में इंटरनेट पत्रकारिता’ के अनुसार) दिसम्बर 1997 तक कुल पंजीकृत 4719 समाचार पत्रों के 1 प्रतिशत से कम ऑनलाइन भी हो चुके थे . भाषागत आधार पर ऑनलाइन पत्र-पत्रिकाओं की संख्या इस प्रकार थी – भाषा वार कुल पंजीकृत और ऑनलाइन पत्रों की संख्या का विवरण 01. अंगरेज़ी - 338 -19 02 हिंदी -2118 - 05 03. मलयालम -209 - 05 04. गुजराती -99 - 04 05. बंगाली -93 - 03 06. कन्नड - 279 - 03 07. तेलुगु - 126 - 03 08 ऊर्दू -495 - 02 09. मराठी -283 - 01 इसका मतलब है कि शुरूआती दौर में अन्य भाषाओं यथा असमिया, मणिपुरी, पंजाबी, उडिया, संस्कृत, सिन्धी आदि भाषा के कोई भी ऑनलाइन संस्करण नहीं थे . आकाशवाणी ने 2 मई 1996 को ऑनलाइन सूचना सेवा का अपना प्रायोगिक संस्करण को अंतरजाल पर उतारा था . अब 2006 के अतिंम दिनों में हम देखते हैं कि देश के लगभग सभी प्रतिष्ठित समाचार पत्रों एवं टिलीविजन चैनलों के पास उनका अपना अंतरजाल संस्करण भी हैं जिसके माध्यम से वे पाठकों को ऑनलाइन समाचार उपलब्ध करा रहे हैं . एक उपलब्ध आंकडा के अनुसार वर्तमान में 14 ई-जीन, 85 न्यूज पेपर, 73 ऑनलाइन न्यूज, 92 पत्रिकाएं, 9 जनरल, 10 टीव्ही न्यूज एवं 8 न्यूज एजेंसी इंटरनेट पर सक्रिय हैं . यदि हम हिंदी भाषा पर केंद्रित हो कर सोचें तो ऑनलाइन पत्र और पत्रकारिता की स्थिति दयनीय दिख सकती है और इस दयनीयता की जड़ में हिंदी आधारित इंटरनेट और वेब तकनीक ज्ञान, तंत्र व शिक्षा का विलम्ब से विकास रहा है . - हिंदी की ऑनलाइन पत्रकारिता का वर्तमान परिदृश्य – नेट पर हिंदी अखबार नई सूचना प्रौद्योगिकी और वेब तकनीक को देश के बड़े अखबार वालों ने जल्दी अपनाया. आज हम देश-विदेश की कई हिंदी दैनिकों को घर बैठे पढ़ सकते हैं. इनमें अमर उजाला, अमेरिका की आवाज़ (वायस औफ़ अमेरिका) आगरा न्यूज़ , आज,आज तक , इरान समाचार, उत्तराँचल टाइम्स, एक्सप्रेस न्यूज़, ख़ास ख़बर, जन समाचार(भारतीय व भारतीय ग्रामीण मुद्दों से सम्बन्धित समाचार पत्र), डियूश वेल्ल(जर्मन रेडियो द्वारा प्रसारित हिन्दी कार्यक्रम) पाञ्चजन्य, इंडिया टुडे, डेली हिन्दी मिलाप, द गुजरात, दैनिक जागरण , दैनिक जागरण ई-पेपर , दैनिक भास्कर , नई दुनिया - नव भारत अखबार, नवभारत टाइम्स, पंजाब केसरी, प्रभा साक्षी, प्रभात खबर, राजस्थान पत्रिका, राष्ट्रीय सहारा, रेडियो चाइना ऑन्लाइन, लोकतेज, ताप्तिलोक, प्रभासाक्षी, लोकवार्ता समाचार, विजय द्वार, वेबदुनिया, समाचार ब्यूरो,सरस्वती पत्र (कनाडा का हिन्दी समाचार)सहारा समय, सिफ़ी हिन्दी, सुमनसा ( कई स्रोतों से एकत्रित हिन्दी समाचारों के शीर्षक) हरिभूमि , ग्वालियर टाइम्स, दैनिक मध्यराज, राजमंगल आदि प्रमुख हैं . इस सूची में समाचार एजेंसियों को भी समादृत किया जा सकता है जिनमें प्रमुख है - यूनीवार्ता, पीटीआई भाषा,ई ऍम ऍस इण्डिया (समाचारपत्रों को बहुभाषीय समाचार सेवा प्रदान करने वाला स्थल), आरएनआई (छत्तीसगढ़ से सचांलित समाचार सेवा) आदि . विश्व की प्रमुखतम आईटी कंपनियाँ भी भाषाई महत्ता के अर्थशास्त्र को भाँपते हुए अब लगातार हिंदी में समाचार पोर्टल का संचालन करने लगे हैं जैसे - याहू, गूगल हिंदी, एमएसएन, रीडिफ़.कॉम, आदि . जहाँ तक सरकारी समाचार पोर्टल का प्रश्न है उसमें लगभग हिंदी भाषी राज्य सरकारों का एक-एक समाचार केंद्रित साइट संचालित हो रहा है . शासकीय विज्ञप्तियों, योजनाओं, समाचारों वाले इन साइटों का उपयोग भी संदर्भ की तरह किया जाने लगा है . इसमें नवोदित राज्य छत्तीसगढ, उत्तराखंड़, झारखंड भी सम्मिलित हो चुके हैं . यहाँ उन ऑनलाइन समाचार पत्रों जाल स्थलों को जिक्र भी समीचीन होगा जो केंद्र शासन के विभिन्न उपक्रमों द्वारा संचालित हैं . इस रूप में ऑल इंडिया रेडियो की वेबसाइट समाचार भारती, व ऑल इंडिया रेडियो, पत्र सूचना कार्यालय, डी.डी.न्यूजव विदेश मंत्रालय के साइट को देख सकते हैं . हिंदी के ये ऑनलाइन समाचार पत्र केवल भारतीय महाद्वीप से ही संचालित नहीं होते बल्कि विदेशी ज़मीन से भी ये भारत, भारतवंशियों तथा वैश्विक समचारों से लगातार समूची दुनिया को अपडेट बनाये रखे हुए हैं . इस श्रेणी में प्रमुखतम वेब पोर्टल हैं – लंदन की बी.बी.सी. हिन्दी खबरें ब्लॉग और ऑनलाइन पत्रकारिता की नई दिशा इंटरनेट पर ब्लॉग तकनीक के विकास और हिंदी भाषा में काम करने सुविधा से ऑनलाइन पत्रकारिता के नये द्वार खुलते दिखाई दे रहे हैं . अभी उसका स्वरूप निजी लेखन तक सीमित है . यूँ तो ब्लॉग निजी लेखन (अच्छाईयों और बुराईयाँ के साथ भी) का साधन है तथापि जिस तरह से वहाँ पत्रकारिता से जुड़े व्यक्तित्वों और उसके आकांक्षियों का आगमन हो रहा है, एक शुभ संकेत है . हिंदी अंतरजाल को खंगालने से यह बात उभर कर आ रही है कि ब्लॉग स्वतंत्र पत्रकारिता का भी मंच और माध्यम हो सकता है . अंग्रेजी ब्लॉग का इतिहास बताता है कि उस भाषा के महत्वपूर्ण पत्रकार व्यक्तिगत (और सामूहिक तौर पर) पत्रकारिता के लिए ब्लॉग की ओर लगातार उन्मुख होते गये हैं, जा रहे हैं . एक तरह से हिंदी ब्लॉग वैकल्पिक पत्रकारिता का भी जरिया हो सकता है . हिंदी इंटरनेटिंग की दुनिया में इसके चिह्न दिखाई देने लगे हैं . इस संदर्भ में मध्यप्रदेश के उन दो पत्रकारों का प्रयास स्तुत्य है जो 2005 से राजपुत इंडिया (http://rajputaindia.spaces.live.com/)और चंबल की आवाज (http://chambal.spaces.live.com/) नामक समाचार पत्र (आंचलिक) नियमित प्रकाशित कर रहे हैं . इस संभावना को नहीं नकारा जा सकता कि भविष्य में सामुहिक बोध वाले पत्रकार इस सस्ती और विश्वसनीय तकनीक का फायदा उठाकर ऑनलाइन पत्रकारिता का सशक्त माध्यम अवश्य बनाना चाहेंगे. खास तौर पर यह इंटरनेट पर आंचलिक पत्रकारिता का कारगर दिव्य और रोचक प्रकल्प हो सकता है . (देखिए लेखक का शोध आलेख – वेब-पत्रकारिता, ब्लॉग और पत्रकार) ई-मेल केवल औपचारिक पत्र प्रेषण का माध्यम नहीं हैं, वेबसाइट पर उपलब्ध समूह अनौपचारिक चर्चा-परिचर्चा का साधन नहीं, इन दोनों का योग नियमित समाचार प्रेषण या सीमित पत्रकारिता का भी साधन है. इस तकनीक युग्म से (भले ही सीमित क्षेत्र और संख्या में) सूचनात्मक पत्रकारिता का रोचक अनुप्रयोग भी होने लगा है . लगे हाथ मैं उदाहरण स्वरूप उस समूह का जिक्र करना चाहता हूँ जिसमें 97 लोग आपस में समाचारों के आदान-प्रदान के लिए सक्रिय हैं . गुगल समूह में पंजीकृत इस दल में अधिकांशतः ग्वालियर संभाग (मध्यप्रदेश) से जुड़े समाचार संप्रेषित होते हैं . हिन्दी दुनिया की तीसरी सर्वाधिक बोली-समझी जाने वाली भाषा है. विश्व में लगभग 80 करोड़ लोग हिन्दी समझते हैं, 50 करोड़ लोग हिन्दी बोलते हैं और लगभग 35 करोड़ लोग हिन्दी लिख सकते हैं. उसके हिसाब से हिंदी में पत्रकारितोन्मुख ऑनलाइन पत्र-पत्रिकाओं की संख्या अत्यल्प है . इस तरह से वर्तमान में अंगरेज़ी की प्रभूता के कारण हिंदी में ऑनलाइन पत्रकारिता शिशु अवस्था पर है आने वाले दिनों में वेब पत्रकारिता में अंग्रेज़ी का प्रभुत्व बहुत दिन नहीं रहने वाला है . क्षेत्रीय और स्थानीय भाषा में बन रहे वेब पोर्टलों और वेबसाइटों का प्रभाव बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है और इनका भविष्य उज्ज्वल दिखाई देता है . पारंपरिक मीडिया और ऑनलाइन पत्रकारिता के बीच की दूरियाँ अब ज्यादा दिन नहीं रहने वाली हैं . डायनामिक फोंट के कारण अब किसी भी ऑनलाइन हिंदी समाचार पत्र को किसी भी कंप्यूटर से पढ़ा जा सकता है . इसके अलावा युनिकोड़ की उपलब्धता से फोंट की समस्या का हल एक तरह से निकाला जा चुका है . छत्तीसगढ़ और सायबर पत्रकारिता छत्तीसगढ़ पत्रकारिता की आदि-भूमि की तरह प्रतिबिंबित होता रहा है . यह वही धरती है जहाँ आज से ----- वर्ष पहले माधवराव सप्रे ने पेंड्रा जैसी छोटी-सी जगह से ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ नामक अखबार की शुरूआत की थी . वह भी आधुनिक सुविधाओं के अभाव के बीच ट्रेडल मशीन के ज़माने में . कहने को छत्तीसगढ़ से भी प्रकाशित नवभारत, दैनिक भास्कर, और हरिभूमि जैसे बहुमान्य एवं बड़े अखबारों के अंतरजाल संस्करण काफी पहले से थे पर न वे समग्र थे, न उन्हें इंटरनेट पर अधिक पाठक पढ़ते-बांचते थे . इसके पीछे फोंट डाउनलोड़ करने की समस्या और शहरों-कस्बों में इंटरनेट की सुविधा का अभाव भी रहा है . वैसे नेट संस्करण वाले ये अखबार अब भी प्रतिदिन के कुछ ही समाचार(प्रिंट संस्करण में से) पाठकों को उपलब्ध कराते हैं . नेट संस्करणों की लोकप्रियता में वृद्धि नहीं होने में इनका अद्यतन नहीं रहना भी हो सकता है . यद्यपि ऑनलाइन पत्रकारिता में स्थान या भूगोल का कोई महत्व नहीं है तथापि इन्हें राज्य की ऑनलाइन पत्रकारिता में शुमार इसलिए भी नहीं किया जा सकता क्योंकि अन्यत्र से संचालित और नियंत्रित होते रहे हैं . इसी तरह एक साप्ताहिक अखबार डिसेन्ट भी अनियमित रूप से अतंरजाल पर दिखाई देती है जो राज्य का पहला ऑनलाइन समाचार पत्र है . छत्तीसगढ़ में नियमित रूप से वेब-पत्रकारिता का प्रारंभ यदि हम सृजन-सम्मान संस्था की सृजन-गाथा नामक मासिक पत्र से माने तो अतिशयोक्ति नहीं होगी, जो मई 2007 में पहला जन्म दिवस मनाने जा रही है और जिसके अभियान से छत्तीसगढ़ की 20 से अधिक महत्वपूर्ण कृतियाँ भी अब ऑनलाइन हैं . यद्यपि यह पूर्णतः साहित्यिक एवं सांस्कृतिक पत्र है तथापि वह अपनी सांस्कृतिक गतिविधियों की रिपोर्टिंग के लिए विश्व के कई देशों में जानी पहचानी जाने लगी है . अब छत्तीसगढ़ से प्रकाशित होने वाले दो अख़बार देशबन्धु और छत्तीसगढ़ (इतवारी अखबार सहित) भी आनलाइन हो चुके हैं, वैसे छत्तीसगढ़ के इन अखबारों को बाँचने के लिए कंप्यूटर में एक्रोब्रेट रीडर होना जरूरी है क्योंकि यहाँ पठनीय सामग्री पीडीएफ़ में रखी जाती हैं . इसके पहले समाचार एंजेसी राष्ट्रीय न्यूज सर्विस(www.rnsindia.org) ने भी अपना ऑनलाइन कारोबार छत्तीसगढ से प्रारंभ कर दिया है जो घर-बैठे छत्तीसगढ़ सहित देश-विदेश के समाचार सदस्यता शुल्क के साथ उपलब्ध करा रहा है . यहाँ इसी क्रम में सुश्री भूमिका द्विवेदी द्वारा संपादित मीडिया विमर्श(www.mediavimarsh.com) नामक वेबसाइट का उल्लेख करना जरूरी है जो पत्रकारिता के अंदरूनी पहलुओं गंभीर विमर्श करने वाली समूची दुनिया के लिए अंतरजाल पर एकमात्र हिंदी वेबजीन के रूप में समादृत होने लगी है . वैसे तो राज्य के एकमात्र पत्रकारिता विश्वविद्यालय के जाल स्थल में प्रतीकात्मक रूप से कुछ निजी गतिविधियों को भी दिखाया जा रहा है तथापि भविष्य में ऐसे महत्वपूर्ण संस्थान की अनुप्रेरणा से (भले ही अकादमिक रूप से ) प्रयोगात्मक समाचार साइट की अपेक्षा शायद वेब पत्रकारिता को कैरियर बनाने का सपना संजोने वाली भावी पीढ़ी कर रही होगी . ऑनलाइन पत्रकारिता में क्रियाशील पत्रकार अब देश के बड़े-बड़े पत्रकार प्रिंट माध्यम के साथ-साथ वेब-मीडिया में भी सक्रिय होते नज़र आने लगे हैं इनमें प्रसिध्द लेखक-पत्रकार खुशवंत सिंह, मशहूर संपादक व मानवाधिकारवादी कुलदीप नायर, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण नेहरू, पूर्व सांसद व संपादक दीनानाथ मिश्र आदि को गिना सकते हैं जो प्रभासाक्षी में नियमित रूप से कॉलम लिखते हैं . विख्यात हिंदी कार्टूनिस्ट काक भी सतत् रूप से नज़र आते है . इधर जाने माने पत्रकार व नवनीत के संपादक विश्वनाथ सचदेव भी सृजनगाथा डॉट कॉम (जो रायपुर से प्रकाशित होती है) पर नियमित स्तंभ लिखने जा रहे हैं . इस सूची में मुंबई के प्रोफेशनल्स कमल शर्मा से नवोदित राज्य के जागरूक संपादक संजय द्विवेदी को भी जुड़ते देखा जा सकता है . जाने माने दक्षिणपंथी गोविन्दाचार्य जैसे विचारक भी इस मीडिया के प्रभाव से मुक्त नहीं है शायद यही कारण है कि मूल्य आधारित पत्रकारिता के लिए कटिबद्ध उनकी चर्चित पत्रिका भारतीय पक्ष ( www.bhartiyapaksha.com) भी पूर्णतः ऑनलाइन पत्रिका बन चुकी है . इतना ही नहीं उसी गोत्र की अन्य महत्वपूर्ण पत्रिकाएं यथा – लोकमंच से संबंद्ध पत्रकार – अभिताभ त्रिपाठी, शशिसिंह भी स्वयं को निरतंर ऑनलाइन उपस्थित किये हुए हैं . इधर छत्तीसगढ़ के पत्रकार एवं व्यंग्यकार गिरीश पंकज ‘बेताल कथा’ स्तम्भ के माध्यम से लगातार हस्तक्षेप कर रहे हैं . इसी क्रम में संजय द्विवेदी का कॉलम ‘मीडिया विमर्श’ भी काबिल-ए-तारीफ़ बनता जा रहा है . प्रख्यात पत्रकार ओम थानवी की लेखनी भी कल्पना नामक एक साइट में लगातार देखने को मिल रही है यह बात अलग है कि उनकी सक्रियता वेब मीडिया में उतनी नहीं है जितनी की प्रिंट मीडिया में . सुदूर एशिया से जीतेन्द्र चौधरी ऑनलाइन पत्रकारिता की लौ लगातार बनाये हुए हैं अपने ब्लॉग – मेरा पन्ना – नाम से . बालेन्दु शर्मा दधीच ऑनलाइन मीडिया और तकनालाजी के क्षेत्र का जाने-माने हस्ताक्षर हैं जिन्हें प्रभासाक्षी के अलावा वाह मीडिया नामक निजी ब्लॉग में सतत् सक्रिय और मार्गदर्शक रूप में देखा जा सकता है . यह समय की माँग और हिंदी को वैश्विक बनाने की स्वस्थ प्रतियोगिता दबाब ही है जो ऑनलाइन साहित्यिक पत्रकारिता भी अपनी पहचान बनाने लगी है . इस परिप्रेक्ष्य में हम राजेन्द्र अवस्थी, रवीन्द्र कालिया जैसे ख्यातनाम संपादकों को भी शुमार कर सकते हैं जो क्रमशः हंस एवं ज्ञानोदय (एवं सहकारी ब्लॉग लेखन भी) के ऑनलाइन संस्करण में समूचे विश्व में पढ़े जा रहे हैं . यहाँ हम उन पत्रकारों का उल्लेख स्थानाभाव के कारण नहीं कर पा रहे हैं जो किसी न किसी ऐसे ऑनलाइन समाचार पत्र से संबंद्ध है जिसका अपना प्रिंट संस्करण भी बाजार में ज्यादा कारगर रूप में उपलब्ध है . युनिकोड़ ने बदला वेब-मीडिया का परिदृश्य वेब मीडिया की लोकप्रियता-ग्राफ़ में गुणात्मक वृद्धि नहीं होने के पीछे अन्य कारणों के साथ फोंट की समस्य़ा भी रही है . शुरूआती दौर में इन अखबारों को पढ़ने के लिए यद्यपि हिंदी के पाठकों को अलग-अलग फ़ॉन्ट की आवश्यकता होती थी जिसे संबंधित अखबार के साइट से उस फ़ॉन्ट विशेष को चंद मिनटों में ही मुफ्त डाउनलोड़ और इंस्टाल करने की भी सुविधा दी जाती थी (गई है) . हिंदी फ़ॉन्ट की जटिल समस्या से हिंदी पाठकों को मुक्त करने के लिए शुरूआती समाधान के रूप में डायनामिक फ़ॉन्ट का भी प्रयोग किया जाता रहा है . डायनामिक फ़ॉन्ट ऐसा फ़ॉन्ट है जिसे उपयोगकर्ता द्वारा डाउनलोड करने की आवश्यकता नहीं होती बल्कि संबंधित जाल-स्थल पर उपयोगकर्ता के पहुँचने से फ़ॉन्ट स्वयंमेव उसके कंप्यूटर में डाउनलोड हो जाता है . यह दीगर बात है कि उपयोगकर्ता उस फ़ॉन्ट में वहाँ टाइप नहीं कर सकता . अब युनिकोड़ित फोंट के विकास से वेब मीडिया में फोंट डाउनलोड़ करने की समस्य़ा लगभग समाप्त हो चुकी है . बड़े वेब पोर्टलों के साथ-साथ सभी वेबसाइट अपनी-अपनी सामग्री युनिकोड़ित हिंदी फोंट में परोसने लगे हैं किन्तु अभी भी अनेक ऐसे साइट हैं जो समय के साथ कदम मिलाकर चलने को तैयार नहीं दिखाई देतीं . दिन प्रतिदिन गतिशील हो रही वेबमीडिया की पाठकीयता (वरिष्ठ पत्रकार संजय द्विवेदी के शब्दों में दर्शनीयता ही सही) को बनाये रखने के लिए पाठक को फोंट डाउनलोड़ करने के लिए अब विवश नहीं किया जा सकता . क्योंकि अब वह विकल्पहीनता का शिकार नहीं रहा . पीड़ीएफ़ में सामग्री उपलब्ध कराना फोंट की समस्या से निजात पाने का सर्वश्रेष्ठ विकल्प या साधन नहीं है . भाषायी ऑनलाइन पत्रकारिता वास्तविक हल तकनीकी विकास से संभव हुआ युनिकोड़ित फोंट ही है जो अब सर्वत्र उपलब्ध है. हिंदी में तकनीक उपलब्ध वेब-मीडिया खासकर हिंदी में पत्रकारिता के विकास में मुख्य बाधा हिंदी में तकनीक का अभाव रहा है पर वह भी लगभग अब हल की ओर है . विंडोज तथा लिनक्स जैसे ऑपरेटिंग सिस्टम का इंटरफेस भी हिंदी में बन चुका है . केन्द्रीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार की इकाई सीडॉक (सेंटर फॉर डवलपमेंट आफ़ एडवांस कंप्यूटिंग) द्वारा एक अरब से भी अधिक बहुभाषी भारतवासियों को एक सूत्र में पिरोने और परस्पर समीप लाने में अहम् भूमिका निभायी जाती रही है . भाषा तकनीक में विकसित उपकरणों को जनसामान्य तक पहुँचाने हेतु बकायदा www.ildc.gov.in तथा www.ildc.in वेबसाइटों के द्वारा व्यवस्था की गई है जिसके द्वारा टू टाइप हिंदी फ़ॉन्ट(ड्रायवर सहित), ट्रू टाइप फॉन्ट के लिए बहुफॉन्ट की-बोर्ड इंजन, यूनिकोड समर्थित ओपन टाइप फॉन्ट, यूनिकोड समर्थित की-बोर्ड फॉन्ट, कोड परिवर्तक, वर्तनी संशोधक, भारतीय ओपन ऑफिस का हिन्दी भाषा संस्करण, मल्टी प्रोटोकॉल हिंदी मैसेंजर, कोलम्बा - हिन्दी में ई-मेल क्लायंट, हिंदी ओसीआर, अंग्रेजी-हिन्दी शब्दकोश, फायर- फॉक्स ब्राउजर, ट्रांसलिटरेशन, हिन्दी एवं अंग्रेजी के लिए आसान टंकण प्रशिक्षक, एकीकृत शब्द-संसाधक, वर्तनी संशोधक और हिंदी पाठ कॉर्पोरा जेसे महत्वपूर्ण उपकरण एवं सेवा मुफ़्त उपलब्ध करायी जा रही है . जहाँ मंत्रालय के वेबसाइट पर लाग आन करके सीडी मुफ़्त में बुलवाई जा सकती है वहाँ इन में से वांछित एप्लीकेशन या सॉफ्टवेयर डाउनलोड भी की जा सकती है . वेब-पत्रकारिता को अधिमान्यता वेब-पत्रकारिता के प्रति आम पत्रकारों में रूझान की कमी के पीछे इसमें कार्यरत पत्रकारों को भारत सरकार व राज्य शासनों द्वारा मिलने वाली सुविधाएं एवं मान्यता का अभाव भी था जो अब दूर हो चुका है . अब वेब पत्रकार बाकायदा होंगें अधिमान्य पत्रकार, अनुभवी और लम्बी सेवा देने वालों को भी मिलेगी भारत सरकार की मान्यता . यहाँ मध्यप्रदेश शासन को खासतौर पर साधुवाद दिया जा सकता है जिसने भारत सरकार से कहीं पहले वेब पत्रकारिता को अधिमान्यता की श्रेणी में रख कर मिसाल कायम किया है . भारत सरकार भी अब वेब-पत्रकारिता को मान्यता देने वालों देशों में सम्मिलित हो चुका है . देश में वेब-पत्रकारिता को विकसित बनाने के लिए भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय में इसके लिए पिछले वर्ष (यानी 12 सितम्बर 2006) आवश्यक संशोधन हो चुका है . अब वेब-पत्रकारिता को भी एक्रीडेशन या मान्यता मिल चुका है अर्थात् भारत सरकार द्वारा नियमों के संशोधन के बाद अपनी साधना में लगे वेब पत्रकारों को उनके कार्य में आसानी के साथ ही वह सभी सुविधायें मिलने लगेंगीं जो अन्य मीडिया के राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त पत्रकारों को मिला करतीं थीं ! इस नये संशोधन से वेब पत्रकारिता को एक जिम्मेवारी और शक्ति दोंनों का इकजाया सयोग मिलेगा और अब इण्टरनेट पर अनेक वरिष्ठ व अनुभवी पत्रकार स्वत: ही जगह बनाने का प्रयास करेगें, साथ ही अब उन नौजवानों के लिये भी प्रशस्ति व उल्लेखनीय कार्यों के लिये दरवाजे खुल गये हैं जो पत्रकारिता को कैरियर के रूप में अपनाना चाहते हैं ! सच्चे मायने में भारत उन विशेष देशों में शामिल हो गया है जो वेब पत्रकारों को प्रत्यायन प्रदान करते हैं. 

Sunday 21 February 2016

 
29 जनवरी भारतीय पत्रकारिता में विशेष दिन है चूंकि इसी दिन 1780 में देश के पहले समाचार पत्र हिक्की'ज़ बंगाल गजट या कलकत्ता जनरल एडवरटाइजर (Hicky's Bengal Gazette, or The Original Calcutta General Advertiser ) का कोलकाता से प्रकाशन आरंभ हुआ था।

कम्पनी पहले ही 1674 में बोम्बे (अब मुंबई) में पहली प्रिंटिंग प्रैस की स्थापना कर चुकी थीं, दूसरी प्रैस 1772 में मद्रास में व फिर 1779 में कलकत्ता (अब कोलकता) में प्रैस लगी। 1780 में जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने भारत का पहला पत्र आरम्भ किया। सनद रहे कि इससे 12 वर्ष पूर्व भी 1768 में ( अधिकारिक तौर पर इसका वर्ष 1776 भी बताया जाता है) में विलियम बोल्ट नामक कम्पनी से नौकरी छोड़ने के बाद कलकत्ता से ही पत्र प्रकाशित करना चाहा था लेकिन उसे बंगाल छोड़ने का आदेश दिया गया व उसके बाद यूरोप जाने को कहा गया जिसके कारण वह पत्र आरंभ न हो सका।

भारत का यह पहला समाचारपत्र, ‘हिक्की'ज़ बंगाल गजट या कलकत्ता जनरल एडवरटाइजर’ एक साप्ताहिक पत्र था।


पत्रकारिता के प्रकार

पत्रकारिता के प्रमुख प्रकार:
    (१) खोजी पत्रकारिता- जिसमें आम तौर पर सार्वजनिक महत्त्व के मामलों जैसे, भ्रष्टाचार, अनियमितताओं और गड़बड़ियों की गहराई से छानबीन कर सामने लाने की कोशिश की जाती है। स्टिंग ऑपरेशन खोजी पत्रकारिता का ही एक नया रूप है।
(२) वाचडाग पत्रकारिता- लोकतंत्र में पत्रकारिता और समाचार मीडिया का मुख्य उत्तरदायित्व सरकार के कामकाज पर निगाह रखना है और कोई गड़बड़ी होने पर उसका परदाफ़ाश करना होता है, परंपरागत रूप से इसे वाचडाग पत्रकारिता कहते हैं।
    (३) एडवोकेसी पत्रकारिता- इसे पक्षधर पत्रकारिता भी कहते हैं। किसी खास मुद्दे या विचारधारा के पक्ष में जनमत बनाने के लिए लगातार अभियान चलाने वाली पत्रकारिता को एडवोकेसी पत्रकारिता कहते हैं।
  (४)  पीतपत्रकारिता-पाठकों को लुभाने के लिये झूठी अफ़वाहों, आरोपों-प्रत्यारोपों, प्रेमसंबंधों आदि से संबंधि सनसनीखेज  समाचारों से संबंधित पत्रकारिता को पीतपत्रकारिता कहते हैं।

  (५)   पेज थ्री पत्रकारिता- एसी पत्रकारिता जिसमें फ़ैशन, अमीरों की पार्टियों , महफ़िलों और जानेमाने लोगों के निजी जीवन  के बारे में बताया जाता है।

खेल पत्रकारिता

खेल केवल मनोरंजन का साधन नहीं बल्कि वह अच्छे स्वास्थ्य, शारीरिक दमखम और बौद्धिक क्षमता का भी प्रतीक है। यही कारण है किं पूरी दुनिया में आति प्राचीनकाल से खेलों का प्रचलन रहा है। मल्ल-युद्ध, तीरंदाजी, घुड़सवारी, तैराकी, गुल्ली डंडा, पोलो रस्साकशी, मलखंभ, वॉल गेम्स, जैसे आउटडोर या मैदानी खेलों के अलावा चौपड़, चौसर या शतरंज जैसे इन्डोर खेल प्राचीनकाल से ही लोकप्रिय रहे हैं। आधुनिक काल में इन पुराने खेलों के अलावा इनसे मिलते जुलते खेलों तथा अन्य आधुनिक स्पर्धात्मक खेलों ने पूरी दुनिया में अपना वर्चस्व कायम कर रखा है। खेल आधुनिक हों या प्राचीन, खेलों में होनेवाले अद्भुत कारनामों को जगजाहिर करने तथा उसका व्यापक प्रचार-प्रसार करने में खेल पत्रकारिता का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। आज पूरी दुनिया में खेल यदि लोकप्रियता के शिखर पर हैं तो उसका काफी कुछ श्रेय खेल पत्रकारिता को भी है।
आज स्थिति यह है कि समाचार पत्रों या पत्रिकाआें के अलावा किसी भी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का स्करप तब तक परिपूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसमें खेलों का भरपूर कवरेज नहीं हो। खेलों के प्रति मीडिया का यह रुझान ’डिमांड' और ’सप्लाई' पर आधारित है। आज भारत ही नहीं पूरी दुनिया में आबादी का एक बड़ा हिस्सा युवा वर्ग का है जिसकी पहली पसंद विभिन्न खेल स्पर्धायें हैं, शायद यही कारण है कि पत्र-पत्रिकाआें में अगर सबसे आधिक कोई पन्ने पढ़ जाते हैं तो वह खेल से संबंधित होते है। प्रिंट मीडिया के अलावा टी. वी. चैनलों का भी एक बड़ा हिस्सा खेलों प्रसारण से जुड़ा होता है। खेल चैनल तो चौबीसों घंटे कोई न कोई खेल लेकर हाजिर ही रहते हैं। लाइव कवरेज या सीधा प्रसारण की बात तो छोड़िये रिकॉर्डेड पुराने मैचों के प्रति भी दर्शकों का रझान कहीं कम नहीं दिखाई देता। पाठकों और दर्शकों की खेलों के प्रति दीवनगी का ही नतीजा है कि आज खेल की दुनिया में अकूत धन बरस रहा है। धन, जो विज्ञापन के रप में हो चाहे पुरस्कार राशि के रप में न लुटानेवालों की कमी है न पानेवालों की। यह स्थिति आज की है। लेकिन एक समय ऐसा भी था जब खेलों में धनदौलत को कोई नामोनिशान नहीं था। प्राचीन ओलिम्पिक खेलों जैसी विख्यात खेल स्पर्धा में भी विजेता को जैतून की पत्तियों के मुकुट का पुरस्कार दिया जाता था लेकिन वह ताज भी अनमोल हुआ करता था।
खेलों में धन-वर्षा का प्रारंभ कार्पोरेट जगत के इसमें प्रवेश से हुआ। कार्पोरेट जगत के प्रोत्साहन से कई खेल और खिलाड़ी प्रोफेशनल होने-लगे और खेल-स्पर्धाआें से लाखों करोड़ो कमाने लगे। आज टेनिस, फुटबॉल, बास्केट बॉल, बॉक्सिंग, स्क्वाश, गोल्फ जैसे खेलों में पैसोंकी बरसात हो रही है।
खेलों की लोकप्रियता और खिलाड़ियों की कमाई की बात करें तो आज क्रिकेट ने, जो दुनिया के गिने-चुने ही देशों में खेला जाता है, लोकप्रियता की नई ऊँचाइयाँ हासिल की हैं। किक्रेट में कारपोरेट जगत के रझान के कारण नवोदित क्रिकेटर भी अन्य खिलाड़ियों की तुलना में अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं।
खेलों में धन की बरसात में कोई बुराई नहीं है। इससे खेलों और खिलाड़ियों के स्तर में सुधार ही होता है, लेकिन उसका बदसूरत पहलू यह भी है कि खेलों में गलाकाट स्पर्धा के कारण इसमें फिक्सिंग और डोपिंग जैसी बुराइयों का प्रचलन भी बढ़ने लगा है। फिक्सिंग और डोपिंग जैसी बुराईयाँ न खिलाड़ियों के हित में हैं और न खलों के। खेल-पत्रकारिता की यह जिम्मेदारी है कि वह खेलों में पनप रही उन बुराईयों के किरध्द लगातार आवाज उठाती रहे। खेलों में खेल भावना की रक्षा हर कीमत पर होनी चाहिए। खेल पत्रकारिता से यह उम्मीद भी की जानी चाहिए कि आम लोगों से जुड़े खेलों को भी उतना ही महत्त्व और प्रोत्साहन मिले जितना अन्य लोकप्रिय खेलों को मिल रहा है।

महिला पत्रकारिता

पत्रकारिता जैसे व्यापक और विशद विषय में महिला पत्रकारिता की अवधारणा भले ही कुछ अटपटी लगती है, किंतु नारी स्वातंत्र्य और समानता के इस युग में भी आधी दुनिया से जुड़े ऐसे अनेक पहलू हैं जिनके महत्त्व को देखते हुए महिला पत्रकारिता की अलग विधाकी आवश्यकता महसूस होती है।
पुरुष और नारी के भेद का सबसे बड़ा आधार तो उनकी अलग शारीरिक संरचना है। प्रकृति ने फुरष को एक सांचे में ढाला है तो नारी को उससे अलग। एक समय था जब समाज फुरष प्रधान हुआ था। फुरष प्रधान समाज ने अपनी सुविधानुसार नारी को अबला बनाकर घर की चारदीवारी तक सीमित कर दिया था। विकास के निरंतर तेज गति से बदलते दौर ने महिलाआें को प्रगति का समान अवसर दिया और महिलाआें ने अपनी प्रतिभा और लगन के बलबूते पर समाज के हर क्षेत्र में अपनी आमिट छाप छोड़ने का जो सिलसिला शुर किया वह लगातार जारी है। आज के दौर में कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं जहाँ महिलाआें की सशक्त उपस्थिति नहीं महसूस की जा रही हो। वर्तमान दौर में राजनीति, प्रशासन, सेना, शिक्षण, चिकित्सा, विज्ञान, तकनीक, उद्योग, व्यापार, समाजसेवा आदि प्रमुख क्षेत्रों में महिलाआें ने अपनी प्रतिभा और क्षमता के आधार पर अपनी राह खुद बनाई है। कई क्षेत्रों में तो कड़ी स्पर्धा और कठिन चुनौती के बावजूद महिलाआें ने अपना शीर्ष मुकाम बनाया है। भारत की इंदिरा नूई, नैनालाल किद्वाई, चंदा कोचर आदि महिलाआें ने सफलता के जिस शिखर को छुआ है वे सभी कड़ी स्पर्धावाले क्षेत्र माने जाते हैं।
तेजी से बदलते सामाजिक परिवेश तथा महिला फुरष समानता के इस दौर में महिलाएँ अब घर की दहलीज लाँघकर बाहर आ चुकी हैं। प्रायः हर क्षेत्र में महिलाआें की उपस्थिति और भागीदारी नजर आती है। शिक्षा ने महिलाआें को अपने आधिकारों के प्रति जागरक बनाया है। अब महिलायें भी अपने करियर के प्रति सचेत हैं। महिला जागरण की इस नवचेतना के साथ-साथ महिलाआें के प्रति अत्याचार और अपराध के मामले भी बढ़े हैं। महिलाआें की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बहुत सारे कानून बने हैं और आवश्यकतानुसार उसमें समय-समय पर संशेधन भी किये जाते रहे हैं। महिलाआें को सामाजिक सुरक्षा दिलाने में महिला पत्रकारिता की अहम भूमिका रही है। महिला पत्रकारिता की आज अलग से जररत ही इसलिए है कि उसमें महिलाआें से जुड़े हर पहलू पर गौर किया जाए और महिलाआें के सर्वांगीण विकास में यह महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सके। महिला पत्रकारिता की सार्थकता महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य से जुड़ी है।
कुछ प्रमुख महिला पत्रकारः मृणाल पांडे, विमला पाटील, बरखा दत्त, सीमा मुस्तफा, तवलीन सिंह, मीनल बहोल, सत्या शरण, दीना वकील, सुनीता ऐरन, कुमुद संघवी चावरे आदि।

बाल-पत्रकारिता

बाल-मन स्वभावतः जिज्ञासु और सरल होता है। जीवन की यह वह अवस्था है जिसमें बच्चा अपने माता-पिता, शिक्षक और चारो तरफ के परिवेश से ही सीखता है। यही वह उम्र होती है जिसमें बच्चे के मास्तिष्क पर किसी भी घटना या सूचना की आमिट छाप पड़ जाती है। बच्चे के आस-पास की परिवेश उसके व्यक्तित्व निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
एक समय था जब बच्चों को परीकथाओं, लोककथाआें, पौराणिक, ऐतिहासिक, धार्मिक कथाआें के माध्यमसे बहलाने-फुसलाने के साथ-साथ उनका ज्ञानवर्ध्दन किया जाता था। इन कथाआें का बच्चों के चारित्रिक विकास पर भी गहरा प्रभाव होता था।
आज संचार क्रांति के इस युग में बच्चों के लिए सूचनातंत्र काफी विस्तृत और अनंत हो गया है। कंंप्यूटर और इंटरनेट तक उनकी पहुँच ने उनकी जिज्ञास को असीमित बना दिया है। ऐसे में इस बात की भी आशंका और गुंजाइश बनी रहती है कि बच्चों तक वे सूचनायें भी पहुँच सकती हैं, जिससे उनके बालमन के भटकाव या विकृती भी संभव है। ऐसी स्थिती में बाल पत्रकारिता की सार्थक सोच और दिशा बच्चों को सही दिशा की ओर अग्रसर कर सकती है। बाल पत्रकारिता की दिशा में प्रिंट और विजुअल मीडिया (द्दश्य-माध्यम) के साथ-साथ इंटरनेट की भी अहम और जिम्मेदार भूमिका हो सकती है।

आर्थिक पत्रकारिता

कोई भी ऐसा व्यापारिक या आर्थिक व्यवहार जो व्यक्तियों, संस्थानों, राज्यों या देशों के बीच होता है, वह आर्थिक पत्रकारिता के सरोकारों में शामिल है।
आर्थिक पत्रकारिता आर्थिक व्यवहार या अर्थ-व्यवस्था के व्यापक गुण-दोषों की समीक्षा और विवेचना की धुरी पर केंद्रित है। जिस प्रकार पत्रकारिता का उद्ददेश्य किसी भी व्यवस्था के गुण-दोषों को व्यापक आधार पर प्रचारित प्रसारित करना है, उसी प्रकार आर्थिक पत्रकारिता की भूमिका तभी सार्थक है जब वह अर्थ व्यवस्था के हर पहलू पर सूक्ष्म नजर रखते हुए उसका विश्लेषण करे और समाज पर पड़ने वाले उसके प्रभावों का प्रचार-प्रसार करने में सक्षम हो। अर्थ-व्यवस्था के मामले में आर्थिक पत्रकारिता व्यवस्था और उपभोक्ता के बीच सेतु का काम करने के साथ-साथ एक सजग प्रहरी की भूमिका भी निभाती है।
आर्थिक उदारीकरण और विभिन्न देशों के आपसी व्यापारिक संबंधों ने पूरी दुनिया के आर्थिक परिद्दश्य को बहुत व्यापक बना दिया है। आज किसी भी देश की अर्थ-व्यवस्था बहुत कुछ आंतरराष्ट्रीय व्यापार संबंधों पर निर्भर हो गई है। दुनिया के किसी कोने में मची आर्थिक हलचल या उथल-पुथल अन्य देशों की अर्थ-व्यवस्था को प्रभावित करने लगी है। सोने और चांदी जैसी बहुमूल्य धातुआें तथा कच्चे तेल की कीमतों के उतार-चढ़ाव से आज दुनिया की कोई भी अर्थ व्यवस्था अछूती नहीं रही।
यूरो, डॉलर, पांड, येन जैसी मुद्रायें तथा सोना, चाँदी और कच्चा तेल आज दुनिया की प्रमुख अर्थ व्यवस्थाआें की नब्ज बन चुकी हैं। कहने का तात्पर्य यह कि आज भले ही सभी देश अपनी अर्थव्यवस्थाआें के नियामक और नियंत्रक हों किन्तु विश्व की आर्थिक हलचलों से वे अछूते नहींहैं। हम कह सकते हैं कि आर्थिक परिद्दश्य पर पूरा विश्व व्यापक तौर पर एक बाजार नजर आता है। सभी देशों की अर्थ व्यवस्थायें आज इसी वैश्विक बाजार की गतिविधियों से निर्धारित होती हैं। मजबूत अर्थव्यवस्था वाले देशों में होनेवाले महत्त्वपूर्ण आर्थिक परिवर्तनों से दुनिया के प्रमुख देश भी प्रभावित होते है। आर्थिक पत्रकारिता के लिए विश्व का आर्थिक परिवेश एक चुनौती है। आर्थिक पत्रकारिता का यह दायित्व है कि विश्व की अर्थव्यवस्था को पभावित करनेवाले विभिन्न कारकों का विश्लेषण वह लगातार करती रहे तथा उनके गुण-दोषों के आधार पर एहतियाती उपयों की चर्चा आर्थिक पत्रकारिता का व्यापक हिस्सा बने।
आर्थिक पत्रकारिता के समक्ष एक बड़ी चुनौती करवंचना, कालाधन और जाली नोटों की समस्या है। कालाधन आज विकसित और विकासशील देशों के लिए एक बड़ी समस्या बना हुआ है। काला धन भ्रष्टाचार से उपजता है और भ्रष्टाचार को ही बढ़ाता है। भ्रष्टाचार की व्यापकता अंततः देश के विकास में बाधक बनती है। कालाधन और आर्थिक अपराधों को उजागर करनेवाली खबरों के व्यापक प्रचार प्रसार की जिम्मेदारी भी आर्थिक पत्रकारिता का हिस्सा है।
भारत जैसे कृषि प्रधान देश में हमारी अर्थ व्यवस्था काफी कुछ कृषि और कृषि उत्पादों पर निर्भर है। भारत में तेजी से विकसित हो रहे नगरों और महानगरों के बावजूद आज भी देश की लगभग 70 प्रतिशत आबादी गाँवों में ही बसती है। देश के बजट प्रावधानों का एक बड़ा हिस्सा कृषि एवं ग्रामीण विकास के मद में खर्च होता है। आर्थिक पत्रकारिता का एक महत्त्वपूर्ण आयाम कृषि एवं कृषि आधारित योजनाआें तथा ग्रामीण विकास के कार्यक्रमों का कवरेज भी है। ग्रामीण विकास के बिना देश का विकास और आर्थिक पत्रकारिता का उद्ददेश्य अधूरा ही रहेगा। व्यापार के परंपरागत क्षेत्रों के अलावा रिटेल, बीमा, संचार, विज्ञान एवं तकनीक जैसे व्यापार के आधुनिक क्षेत्रों ने आर्थिक पत्रकारिता को व्यापक क्षितिज और नया आयाम दिया है। देश की अर्थव्यवस्था को सही दिशा देकर उसे सुचार और सुद्दढ़ बनाना आर्थिक पत्रकारिता के लिए चुनौती तो है ही उसकी सार्थकता भी इसी में निहित है।
प्रमुख पत्र-पत्रिकाएँः
इकॉनॉमिक टाईम्स, फाइनेंशियल एक्सप्रेस, बिजनेस स्टैण्डर्ड, बिजनेस लाइन, मनी कंट्रोल, इकॉनामिक वेल्थ, मिंट, व्यापार आदि

पत्रकारिता के अन्य रूप

  • ग्रामीण पत्रकारिता
  • व्याख्यात्मक पत्रकारिता
  • विकास पत्रकारिता
  • संदर्भ पत्रकारिता
  • संसदीय पत्रकारिता
  • रेडियो पत्रकारिता
  • दूरदर्शन पत्रकारिता
  • फोटो पत्रकारिता
  • विधि पत्रकारिता
  • अंतरिक्ष पत्रकारिता
  • सर्वादय पत्रकारिता
  • चित्रपट पत्रकारिता

Tuesday 16 February 2016

पत्रकारिता में आपका स्वागत है !

पत्रकारिता’ समाज का एक ऐसा दर्पण है जिसमें समाज में घटित समस्त घटनाओं को देखा जा सकता है। यदि यह दर्पण धुमिल हो जाय या धुमिल होने की स्थिति में हो तो इसे सरंक्षित करने या साफ रखने की जिम्मेदारी केवल इससे जुड़े लोगों की ही नहीं है, अपितु समाज के बुद्धीजीवी वर्ग और चिन्तनशील लोगों की भी है। आज यह समतल (समान परिदृश्य वाला) दर्पण इतना धुमिल हो चुका है कि समाज में हकीकत में हो कुछ और रहा है और इसमें दिख कुछ और रहा है। यह उतल-अवतल दर्पण में परिवर्तित हो चुका है। यह इससे जुड़े तथाकथित लोगों के अनुरूप छोटी चीज को बड़ी तथा बड़ी चीज को छोटी दिखा रहा है।
            समसामयिक घटना-चक्र का शीघ्रता में लिखा गया इतिहास को ‘पत्रकारिता’ कहा जाता है। समाचारों के संकलन और उनके मात्र प्रस्तुतीकरण के प्रारम्भिक स्तर से लेकर आज तक पत्रकारिता के स्वरूप में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए हैं। हेरम्ब मिश्र लिखते हैं कि ‘‘समाचार पत्र का जन्म अगर चौदहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में हुआ था, तो पत्रकारिता का जन्म वस्तुतः सत्रहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में माना जाएगा,जबकि इसे एक कला की संज्ञा मिली और इसका अपना एक आदर्श निर्धारित हुआ। अन्यत्र वे लिखते हैं- ‘‘पत्रों के मान-वृद्धि के साथ ही पत्र से पत्रकारिता का जन्म एक कला और विज्ञान के रूप में हुआ। यहीं पत्रकारिता के उस आदर्श और दायित्व की नींव पड़ी जिसने पत्र और पत्रकारिता को ‘चतुर्थ सत्ता’ का आसन प्रदान किया।
            पत्रकारिता के श्रीगणेश का मूल कारण मानव की जिज्ञासा वृत्ति रही है। मनुष्य न सिर्फ अपने आस-पास के परिवेश से परिचित होना चाहता है वरन् दुनिया के दूसरे क्षेत्रों में क्या घटित हो रहा है- यह भी जानना चाहता है। समस्त संसार के दैनन्दिन घटनाक्रम से मनुष्य को यथाशीघ्र परिचित कराने के प्रयासों की होड़ में पत्रकारिता अपने विविध रूपों में विकसित होने लगी। आज पत्रकारिता में दैनिक पत्रों से लेकर साप्ताहिक, पाक्षिक, त्रैमासिक, अर्द्धवार्षिक, वार्षिक आदि सभी पत्रिकाएं तथा रेडियो, दूरदर्शन, इटंरनेट,  ईमेल आदि, जनसंचार के विभिन्न विधाएं अस्तित्व में हैं। ‘ज्ञान और विचारों को शब्दों तथा चित्रों के रूप में दूसरे तक पहुंचाना ही पत्रकारिता है।       
              पत्रकारिता के लिए अंग्रेंजी में ‘जर्नलिज्म’ शब्द उपयोग होता है जो ‘जर्नल’ से निकला है, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘दैनिक’ है। दिन-प्रतिदिन के क्रिया-कलापों, सरकारी बैठकों का विवरण ‘जर्नल’ में रहता था। 17वीं एवं 18वीं शदी में पीरियाडिकल के स्थान पर लैटिन शब्द ‘डियूनरल’ और ‘जर्नल’ शब्दों के प्रयोग हुए। 20वीं सदीं में गम्भीर समालोचना और विद्वत्तापूर्ण प्रकाशन को इसके अन्तर्गत माना गया। ‘जर्नल’ से बना ‘जर्नलिज्म अपेक्षाकृत व्यापक शब्द है। समाचार पत्रों एवं विविधकालिक पत्रिकाओं के सम्पादन एवं लेखन और तत्सम्बन्धी कार्यों को पत्रकारिता के अन्तर्गत रखा गया। इस प्रकार समाचारों का संकलन-प्रसारण,विज्ञापन की कला एवं पत्र का व्यावसायिक संगठन पत्रकारिता है। समसामयिक गतिविधियों के संचार से सम्बद्ध सभी साधन चाहे वे रेडियो हो या टेलीविजन इसी के अन्तर्गत समाहित हैं।
            जहां पत्रकारिता की उत्पत्ति सवांद कायम करने व इच्छा व भावनाओं के आदान-प्रदान के लिए मानी जाती है,वहीं पत्रकारिता की उत्पत्ति समाज में जनचेतना और मनचेतना के लिए मानी जाती है। परिभाषिक रूप से पत्रकारिता का मूल उद्देश्य सूचना देना, शिक्षित करना तथा मनोरंजन करना है। इन तीन उद्देश्यों में सम्पूर्ण पत्रकारिता का सार तत्व समाहित किया जा सकता है। अपनी बहुमुखी प्रवृतियों के कारण पत्रकारिता व्यक्ति और समाज के जीवन को गहराई तक प्रभावित करती है। पत्रकारिता देश व समाज की जनता की चित्तवृत्तियों,अनुभूतियों और आत्मा से साक्षात्कार करती हुई मानव मात्र को ‘जीने की कला’ सिखाती है। सत्य की खोज में रत रहते हुए समाज में उदात्त मूल्यों की स्थापना की दिशा में पत्रकारिता की भूमिका विशेष उल्लेखनीय है। इसका मूल लक्ष्य ही अन्याय को समाज के सामने रखना,असहाय और पीड़ितों की रक्षा एवं सहयोग तथा जनता का पथ प्रदर्शन करना है। पत्रकारिता सामाजिक-सांस्कृतिक एवं राजनीतिक चेतना की अग्रदूत बनकर जनकल्याण और विश्व बन्धुत्व एवं भ्रातृत्व की भावना को विकसित करने का सशक्त माध्यम है।
            यदि हम भारतीय पत्रकारिता के इतिहास पर एक नजर डाले तो इससे प्रतीत होता है कि भारतीय पत्रकारिता का उद्भव व विकास सामाजिक चेतना व राष्ट्रभक्ति को लेकर हुयी जो बाद में स्वराज्य को लेकर मुखर हुयी और समाज में स्वाधीनता को लेकर इसने जनचेतना जगाने के साथ-साथ हमे अपने अधिकार पाने का भी रास्ता दिखाया। धीरे-धीरे इसने अंग्रेज सरकार के खिलाफ भारतीय समाज में क्रांति लाने का भी काम किया।
            राजाराममोहन राय भारतीय परम्परा के एक महान समाजसुधारक थे जिन्होंने समाज सेवा व सामाजिक चिन्तन को लेकर ही पत्रकारिता शुरू की। मोहन राय ने 1821 में बंगला साप्ताहिक ‘संवाद कौमुदी’ का प्रकाशन किया। इस पत्र के माध्यम से उन्होनें सती प्रथा का तीव्र विरोध किया। इसके साथ ही 12 अप्रैल, सन् 1822 को राजाराममोहन राय ने ‘मिरातुल अखबार’ नाम से फारसी पत्र प्रारम्भ कर अपने विचारों को व्यापकता प्रदान की। पक्षपात रहित होकर औचित्य का समर्थन करने और यथार्थ स्थिति का सहज प्रकाशन करने के लिए 10 मई, सन् 1829 को नीलरतन हालदार के सम्पादकत्व में बंगला, फारसी और हिन्दी भाषा में ‘बंगदूत’ पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया। 
            पण्डित युगल किशोर शुक्ल द्वारा 30 मई 1826 को ’उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन शुरू किया गया। यह पत्र हिन्दी पत्रकारिता की विकास यात्रा का महत्वपूर्ण बिन्दु था। हालांकि 4 दिसम्बर, सन् 1927 को पत्र प्रकाशन बन्द हो गया था, किन्तु जो दीप शिखा ’उदन्त मार्तण्ड’ ने प्रज्वलित की वह प्रतिदिन प्रदीप्त होती रही तथा उसके प्रकाश में हमने स्वाधीन भारत का स्वप्न साकार किया। ’उदन्त’ का अर्थ समाचार है और मार्तण्ड का अर्थ सूर्य है। सूर्य की किरणों की भांति। ’उदन्त मार्तण्ड’ ने अपने विचारों को आम जनता में फैलाया तथा क्रान्ति की पृष्ठभूमि तैयार करने में सहयोग दिया।
            भारतीय पत्रकारिता की कहानी भारतीय राष्ट्रीयता के विकास की कहानी है। दोनों की विकास भूमियां एक-दूसरे की सहायक रही हैं। यदि पत्रकारिता को राष्ट्रीयता ने प्रज्वलित किया तो पत्रकारिता ने भी राष्ट्रीयता को उज्वलित कर राष्ट्रीयता के विकास की अनुकूल भूमि तैयार की।
          भारतीय पत्रकारिता का उदय राष्ट्रीय आन्दोलन की पृष्टभूमि में सांस्कृतिक चेतना को जागृत करने के लिए ही हुआ। व्यावसायिक उद्देश्यों से दूर त्याग, तपस्या और बलिदान की भावना इसमें मुख्य थी। संस्कृति पर छाए कुहासे को दूर कर भारतीय पत्रकारिता ने दिशा हीन समाज को दिशा निर्देशित किया तथा अतीत के गौरव से परिचित कराया। देश की चेतना को झंकृत करके निराशा हृदयों में आशा का संचार करने तथा जड़ और मृतप्रायः भावनाओं में क्रान्ति अंकुरित करने में पत्रकारिता का विशिष्ट योगदान रहा है। ‘पयामे आजादी’ इसका एक मुख्य उदाहरण है। अपने नाम के अनुरूप ही यह पत्र आजादी का संदेश लेकर आया। स्वतन्त्रता आन्दोलन के नेता अजीमुल्ला खां ने 8 फरवरी, सन् 1857 को दिल्ली से ’पयामे आजादी’ का प्रकाशन शुरू किया था।
           स्वतन्त्रता का शंखनाद करने वाले इस पत्र ने तत्कालीन स्थितियों पर खुलकर लिखा तथा सरकार की नीतियों की निर्भीक आलोचना की। 8 अप्रैल, सन् 1857 की युवा क्रान्तिकारी मंगल पाण्डे को फांसी लगा दी गई। फलस्वरूप सशक्त जन आन्दोलन ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध उठ खड़ा हुआ। अंग्रेजों से टक्कर लेने जगह-जगह सैनिकों की तथा आजादी के दीवानों की टोलियां निकल पड़ी। सिर पर कफन बांधे निर्भीकता के साथ लोग स्वतन्त्रता यज्ञ में अपनी आहुति देने को तत्पर थे।
           भारतेन्दु के समय देश में नवीन राजनैतिक-सामाजिक चेतना का उदय होना प्रारम्भ हो गया था। पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित समाचारों तथा लेखों पर जन-सामान्य अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने लगा तथा उनमें व्यक्त विचारों से उद्वेलित भी होने लगा। ब्रह्म समाज, प्रार्थना सभा, आर्य समाज, थियोसोफिकल सोसायटी जैसे समाज सुधारक संगठनों के सुधारवादी आन्दोलनों ने जनमानस के चिन्तन को व्यापक स्तर पर प्रभावित किया और यह प्रभाव तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं में भी उभर कर सामने आया। जातीय उन्नयन के प्रति प्रभाव तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं में भी उभर कर सामने आया। जातीय उन्नयन के प्रति समर्पित इन पत्र-पत्रिकाओं में जो सामाजिक-राजनैतिक प्रतिबद्धता दिखाई देती हैं उसके मूल में भारतेन्दु की ही अद्भुत प्रेरणा शक्ति कार्य कर रही थी। इस युग के लेखक में उत्साह था, जिन्दादिली थी और थी साहित्य साधना की उत्कृष्ट ललक।
            गणेश शंकर विद्यार्थी से लेकर महात्मा गांधी, पण्डित जवाहरलाल नेहरू, पण्डित मदनमोहन मालवीय, लाला हरदयाल, चन्द्र शेखर आजाद, सरदार भगत सिंह जैसे देश भक्तों ने पत्रकारिता का सदुपयोग स्वाधीनता के लिए किया। यह स्मरणीय है और रहेगा।
             पत्रकारिता क्या है और पत्रकारिता की उत्पत्ति किन उद्देश्यों को लेकर हुई इसका विस्तृत अध्ययन इस लेख में मेरे द्वारा किया गया है। लेकिन वर्तमान में पत्रकारिता -
                        अपने उद्देश्य से भटक गई है,
                        केवल स्वार्थ पर अटक गई है।
                        मूलरूप से चटक गई है,
                        भ्रस्टाचार रूपी नागिन इसे गटक गई है।।
             जहां पत्रकारिता का जन्म जनचेतना-मनचेतना को लेकर हुयी थी वहीं आज पत्रकारिता का उद्देश्य मात्र धनचेतना ही रह गया है। लोकतंत्र के इस चौथे स्तम्भ को दीमक लग रहा है। लोकतंत्र रूपी छत चार स्तम्भों पर टिकी है जिसमें से एक स्तम्भ पत्रकारिता भी है। पत्रकारिता इस छत का ऐसा स्तम्भ है जो चौथे स्तम्भ के रूप में छत को राके रखता है, साथ ही इस छत के अन्य तीन स्तम्भों न्यायपालिका, कार्यपालिका, व्यवस्थापिका को भी सहारा देता है। यह इन तीनों स्तम्भों के बीच सामंजस्य या संतुलन बनाये रखता है। इस कथन का तात्पर्य यह है कि पत्रकारिता लोकतंत्र का एक ऐसा सशक्‍त माध्यम है जो लोकतंत्र की हिफाजत तो करता ही साथ ही न्यायपालिका, कार्यपालिका और व्यवस्थापिका के बीच सामंजस्य व संवाद बनाये रखता है। लोकतंत्र के जिस स्तम्भ पर इतनी जिम्मेदारी हो यदि उस पर ही दीमक लगना शुरू हो जाय तो यह एक लोकतांत्रिक रूपी छत के ढहने का कारण बन सकता है।
          वर्तमान में पत्रकारिता को पीत एवं पेड पत्रकारिता नामक दो वाइरसों ने अपनी गिरफ्त में ले लिया है जो पत्रकारिता के स्वास्थ्य के लिए चिन्ता का विषय बन गये हैं। आज पैसा देकर अपनी इच्छानुसार समाचार छपवाना व समाचार प्रसारित करना एक आम बात हो गई है। यदि एक पत्रकार चाहे तो एक छोटी सी झूटी घटना को बढ़ा-चढ़ाकर तथा एक बड़ी वास्तविक और सत्य घटना को छोटे स्तर पर प्रकाशित व प्रसारित कर सकता है। आज जब हम एक आम आदमी की जुवां से यह सुनते हैं कि पत्रकारिता बिक चुकी है तो बहुत दुःख होता है। दुःख इसलिए होता है कि जिस चीज की उत्पत्ति या निर्माण किसी के हित के लिए हुआ था, आज वही अहित में अधिक उपयोग हो रही है। आज अवश्यकता है, इस चौथे स्तम्भ को इन वाइरस से बचाने के लिए एण्टीवाइरस तैयार करने की। इसकी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की।